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कोरोना काल की कविताई / डॉ.निम्मी ए.ए.

कोरोना काल की कविताई डॉ . निम्मी ए.ए. हिमगिरी के उत्तुंग शिखर पर बैठ शिला की शीतल छांह एक पुरुष भीगे नयनों से देख रहा था प्रलय प्रवाह। [1] घरबंदी-तालबंदी के उस संकटकालीन दौर में जयशंकर प्रसाद की ‘ कामयनी ’ की शुरुआती पंक्तियों को प्रत्येक हिंदी साहित्य प्रेमियों ने भोगा होगा। चीन के वुहान से फैले कोरोना वायरस ने धीरे-धीरे पूरे विश्व को अपनी चपेट में ले लिया। विश्व के तमाम देश फिलहाल इसकी गिरफ्त में है। निरीह जनता दम तोड़ रही हैं। इस वायरस से संक्रमित होने वालों की संख्या दिनोंदिन बढ़ती जा रही है और इसी रफ्तार से मौतों का भी आंकड़ा निरंतर बढ़ रहा है। बेहद खौफ़नाक मंज़र हैं यहां तबाही का । हालंकि साल 2019 के आख़िरी महीने में दृश्य में आई महामारी ने सारे संसार को प्रभावित और विचलित किया। साहित्य का संसार भी इस आपदा से अछूता नहीं रहा। संसार की कई भाषाओं में इस दरमियान कोरोना-केंद्रित साहित्य रचा गया। हिंदी में भी इसकी प्रचुरता रही। हिंदी कविता के कमोबेश तमाम प्रमुख कवियों ने कोरोना और उससे उपजे असर को अपनी तूलिका से दर्ज किया। बहरहाल साहित्य में कोई भी आपदा हो उसका बयान सिलसि