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सफर

इन तन्हा राहों में कहीं थक नही जाना ए मुसाफिर, शायद की बहुत दूर तक सफर अभी बाकी है।     

भरोसा

"भरोसा" सब पर कीजिए, लेकिन सावधानी के साथ! क्योंकि, कभी कभी "खुद के दांत" भी, जीभ को "काट" लेते है।       

एहसास

कौन कहता है कि ए हसास नज़दीकियों के मोहताज़ होते हैं, वो लोग सबसे क़रीब होते हैं जो मीलों दूर रहते हैं।           

खुदा की करिश्मा

अजीब खेल है उस परमात्मा का लिखता भी वही है मिटाता भी वही है भटकाता है राह तो दिखाता भी वही है उलझाता भी वही है सुलझाता भी वही है जिंदगी की मुश्किल घड़ी में दिखता भी नहीं मगर साथ देता भी वही हैं।                    

शुभचिन्ता

कोई सराहना करे या निंदा लाभ आपका ही है, क्योंकि..... प्रशंसा प्रेरणा देती है और निंदा सुधरने का अवसर।            आँसू जानते हैं कौन अपना है तभी तो अपनों के सामने टपक जाते है, मुस्कुराहट का क्या है वह तो ग़ैरों से भी वफ़ा कर लेती है।