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हिन्दी उपन्यासों में तृतीय प्रकृति की अस्मिता / डॉ.निम्मी ए.ए.

    हिन्दी उपन्यासों में तृतीय प्रकृति की अस्मिता शोध सार :             हिंदी साहित्य में तृतीय प्रकृति की अस्मिता का विकास सामान्यतः कथा-साहित्य में ज़्यादातर देखा जा सकता है। मुख्यधारा समाज से खारिज कर दिए जाने की वजह गुमनाम जीवन व्यतीत करने केलिए अभिशप्त इस समुदाय की संरचना काफी जटिल है। द्विलिंगी सामाजिक व्यवस्था में इनके प्रति सामाजिक स्वीकृति का नितांत अभाव है। हिंदी साहित्य इस समुदाय के मसलों को विभिन्न साहित्यिक विधाओं , खासकर उपन्यास को केंद्र में लेकर बहस-मुबाहिसे की दिशा में प्रयासरत है। यह शोध आलेख नीना शर्मा हरेश का ' मेरे हिस्से की धूप ', महेंद्र भीष्म का ' मैं पायल …' और मोनिका देवी का ' अस्तित्व की तलाश में सिमरन ' पर केन्द्रित है।   बीज शब्द:   अस्मिता , अस्मितामूलक विमर्श , विमर्श , लैंगिक विकलांगता , उभयलिंगी , हिजड़ा , किन्नर , तृतीय प्रकृति , जनन – ग्रंथि , प्रकृति के क्रूर मज़ाक , तीसरी दुनिया , पहचान की स्वीकृति।       शोध विस्तार:     ‘ आदर्श हिंदी शब्दकोश ’ में ‘ अस्मिता ’ शब्द के लिए आत्मश्लाघा , अहंकार मोह आद