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मैं

भीतर शून्य, बाहर शून्य। शून्य चारो ओर है, मैं नहीं हूं, मुझमें फिर भी "मैं - मैं" का ही शोर है।         

बातचीत

"बातचीत" यू तो शब्द ही है, पर की जाए तो दिलो के कई मैल धुल जाते हैं।    

रिश्ता

बुद्धिमान व्यक्ति कई बार, जवाब होते हुए भी पलट कर नहीं बोलते क्योंकि, कई बार रिश्तों को जिताने के लिए खामोश रहकर, हारना भी जरूरी होता है।         

शुभ चिंता

जब हम रिश्तों के लिए वक़्त नहीं निकाल पाते, तो वक़्त, हमारे बीच से रिश्ता निकाल देता है।