‘तिनका तिनके पास’ में अभिव्यक्त नारी चेतना/ डॉ. निम्मी ए.ए.
आज साहित्यिक एवं सांस्कृतिक विमर्शों में स्त्री विमर्श का विशेष महत्व है | स्त्री विमर्श से तात्पर्य स्त्री को केन्द्र में रखकर समाज , संस्कृति , परंपरा , एवं इतिहास का पुनरीक्षण करके स्त्री की स्थिति पर मानवीय दृष्टि से विचार करना है | दरअसल हाशियेकृत स्त्री एवं पददलित जन समूह का मुख्य धारा के केन्द्र में आने का संघर्ष ही इसका निदान है | इक्कीसवीं शताब्दी के हिन्दी उपन्यासों में स्त्री के स्वतंत्र व्यक्तित्व व अस्मिता की तलाश जारी है | अतएव स्त्री और पुरुष को समाज और परिवार की अनिवार्य इकाई मानकर आपस में समादृद समंजन स्थापित करने की चेष्टा हो रही है इन कोशिशों में महिला उपन्यासकारों की भूमिका सराहनीय है | शायद लोहे का स्वाद लुहार की अपेक्षा वह घोड़ा जानता है जिसके मुंह में लगाम है | यानी कि भुगतनेवाला ही उसका दर्द बेहतर समझ सकता है | उषा प्रियंवदा , मन्नू भंडारी , कृष्णा सोबती , मृदुला गर्ग , मैत्रेयी पुष्पा , चित्रा मुद्गल , अनामिका , सूर्यबाला , अल्का सरावगी , प्रभा खेतान आदि की रचनाओं को देखकर यह बात जाहीर हो जाती है कि फिलहाल नये युग की स्त्री ने अप